छत्तीसगढ़ की राजधानी में बैंक की 295 शाखाएं और 85 एटीएम हैं, जिनकी सुरक्षा में भारी खामियां, 70 फीसदी बैंकों में सुरक्षा गार्ड ही नहीं मिले सुरक्षा ऑडिट के दौरान, कैमरे बंद और अलार्म ख़राब





छत्तीसगढ़ की  राजधानी में अलग-अलग बैंक की 295 शाखाएं और 85 एटीएम हैं, जिनकी सुरक्षा में भारी खामियां पाई गई हैं। सुरक्षा ऑडिट के दौरान 70 फीसदी बैंकों में सुरक्षा गार्ड ही नहीं मिले, जबकि 90 फीसदी एटीएम की सुरक्षा सिर्फ कैमरे के भरोसे है। एटीएम का मेंटेनेंस देखने वाली कंपनी भी दिन में दो बार सुरक्षा का जायजा लेकर चली जाती है।

उसके बाद एटीएम भगवान भरोसे रहता है। इसमें भी कई एटीएम में कैमरे महीनों से बंद हैं। उसे सुधारा नहीं गया है। इन वजहों से बैंक के भीतर घुसकर अपराधी उठाईगिरी कर रहे हैं। बैंक के बाहर लुटेरे मंडराते रहते हैं, लोगों पर नजर रखते हैं। उसके बाद घटना को अंजाम देते हैं।


बैंक में गार्ड नहीं फंड की कमी होने से
पुलिस की सुरक्षा ऑडिट में खुलासा हुआ है कि 70 फीसदी बैंकों और 90 फीसदी एटीएम में सुरक्षा गार्ड ही नहीं हैं। जहां हैं वहां सिर्फ एक या दो गार्ड रखे गए हैं। इसमें भी 40 फीसदी बैंक में गार्ड बैंक के भीतर होते हैं। बैंक के बाहर क्या हो रहा है? संदिग्ध रूप से कौन खड़े हैं? 

यह भी देखने वाला कोई नहीं होता है। कुछ बैंक में तो सुरक्षा गार्ड लोगों की पर्ची भरने या उनकी मदद करने में लगे रहते हैं। पुलिस ने इसे बैंक की सुरक्षा में चूक बताया है। बैंक के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास फंड कम है।


कैमरे लगाए है पर क्वालिटी अच्छी नहीं और न ही सिस्टम

शहर के 30 फीसदी बैंक और एटीएम में कैमरे बंद मिले है या उनमें तकनीकी खामियां पाई गईं, जिससे बैंक में आने वालों के फुटेज अच्छे से रिकॉर्ड नहीं हो रहे हैं। कई बैंकों में 5-6 कैमरे लगे हैं। उसमें से सिर्फ 2-3 ही काम कर रहे हैं। बाकी बंद हैं। 

बैंक के बाहर कैंपस और सड़क को फोकस करते हुए कैमरा लगाने का निर्देश दिया गया है। इसमें अधिकांश बैंक ने कैमरे लगाए हैं। 

इसमें उनका रेंज कम है या फिर क्वालिटी अच्छी नहीं है। 80 फीसदी बैंक में कैमरों का रोजाना या कामकाजी समय में मॉनिटरिंग करने का कोई सिस्टम ही नहीं है।


हेल्पडेस्क ही नहीं कई बैंक में तथा है वहां कर्मचारी गायब

60 फीसदी बैंक में हेल्पडेस्क ही नहीं है, जिसकी वजह से लोग ठगी और उठाईगिरी का शिकार होते हैं, क्योंकि बैंक में बुजुर्ग या ऐसे लोग आते हैं, जिन्हें बैंकिंग की ज्यादा जानकारी नहीं होती है। उन्हें पर्ची तक भरने नहीं आता है। ऐसे लोगों को ही अपराधी शिकार बनाते हैं। मदद का झांसा देकर उनका पैसा पार कर देते हैं। हेल्प डेस्क होने से इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है। वहीं जिन बैंकों में हेल्पडेस्क है, वहां कर्मचारी गायब रहते हैं या लोअर स्टाफ को बिठा दिया जाता है।

 ख़राब हो गए है अलार्म

एएसपी तारकेश्वर पटेल ने बताया कि बैंकों में अलार्म लगे हुए हैं, लेकिन इसमें से 25 फीसदी बैंक में अलार्म बंद मिले, जबकि 15 फीसदी बैंक में अलार्म लगे हैं, लेकिन उसकी आवाज बहुत है। 

अलार्म की आवाज बाहर सुनाई नहीं देती। कुछ जगह पर अलार्म के तार को चूहों ने काट दिया है, जबकि अलार्म इसलिए लगाया जाता है कि कोई भी घटना होने पर लोगों को अलर्ट किया जा सके।

  • बैंक की सुरक्षा ऑडिट करने के बाद अधिकारियों के साथ बैठक की गई। उन्हें सुरक्षा को लेकर अहम निर्देश दिए गए हैं। उनकी समस्या भी सुनी गई है।

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