कारगिल जंग की जीत की गाथा बताई " राशन मिले या न मिले लेकिन गोला - बारूद में कमी नहीं होनी चाहिए साहब; तोपची नायक दीपचंद, दोनों पैर गंवा चुके

 






26 जुलाई सन 1999 को भारतीय सेना ने पकिस्तान को हराकर कारगिल की जंग जीती थी। हर साल इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 8 मई 1999 को शुरू हुई कारगिल जंग 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान की हार के साथ खत्म हुई थी। इस युद्ध क्षेत्र का मुश्किल टास्क था तोलोलिंग पर कब्जा, मगर तोलोलिंग पर तिरंगा फहराया गया। अब दुश्मन के बंकरों को अपनी तोप से उड़ाने वाले तोपची नायक दीपचंद प्रख्यात ने रणभूमि की शौर्य गाथा सुनाई है। दीपचंद रायपुर में कारगिल विजय दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने रायपुर पहुंचे हैं।


साहब राशन भले मिले न मिले गोला - बारूद भरपूर मिलना चाहिए

दीपचंद अपनी यूनिट में सबके फेवरेट जवान थे। सबको अपनी गायकी और शेरो शायरी के हुनर से एंटरटेन किया करते थे। जब कारगिल की लड़ाई चल रही थी टैंक और बड़ी बंदूकों के साथ दीपचंद की टीम दुश्मनों के बंकर तबाह कर रही थी। 

दीपचंद बताते हैं एक बार उनके अफसरों ने हालचाल लिया। तब जंग के मैदान में दीपचंद ने कहा था साहब राशन भले मिले न मिले गोला - बारूद भरपूर मिलना चाहिए। दीपचंद ने जंग के वक्त का एक किस्सा बताते हुए कहा जब मेरी बटालियन को युद्ध के लिए मूव करने का ऑर्डर मिल था, तब हम बहुत खुश हो गए थे। 

पहला राउंड गोला मेरी गन चार्ली-2 से निकला था तोलोलिंग पोस्ट पर और वही पहला ही गोला हिट हो गया था। हमने इस मूवमेंट में 8 जगह गन पोजिशन चेंज किया। हम अपने कंधों पर गन उठाकर लेकर जाते थे। हमारी बटालियन ने 10 हजार राउंड फायर किए। मेरी बटालियन को 12 गैलेंटरी अवॉर्ड मिला और हमें कारगिल जीतने का सौभाग्य मिला। 


दोनों पैर और एक हाथ ब्लास्ट में गवाएं 

कारगिल की लड़ाई के बाद संसद पर हमला हुआ था उस दौरान देश की सीमाओं पर भारतीय सेना को रिप्लाई किया गया था। दीपचंद राजस्थान की सीमाओं पर तैनात थे तो क्लियर करते वक्त अचानक गोला बारूद में आग लग जाने की वजह से ब्लास्ट हो गया। इसी ब्लास्ट में दीपचंद के दोनों पैर और एक हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गए। जिन्हें इलाज के दौरान काटना पड़ा


पैरों पर तकिया लगाकर चादर ढंक दिया करते 

दीपचंद बताते हैं कि उनकी पत्नी से उन्होंने यह बात छिपाई थी। वह जब भी अस्पताल आती थी उनके साथी उनके पैरों पर तकिया लगाकर चादर ढंक दिया करते थे, ताकि बीवी को यह पता ना चले कि पति के दोनों पैर नहीं रहे। कुछ वक्त बाद समय बीता और पत्नी को दीपचंद ने अपने शारीरिक नुकसान के बारे में बताया वक्त भी जाने की वजह से दुख थोड़ा कम हुआ। 

दुखद संयोग ही रहा कि दीपचंद अपनी यूनिट में क्रॉस कंट्री यानी की लंबी दूरी की दौड़ अक्सर जीता करते थे। हादसे ने उनके पैरों को ही छीन लिया। मगर आज दीपचंद निराश नहीं होते वह अक्सर लोगों को मोटिवेट करते हैं जो मिला उसे सौभाग्य मानते हैं।




भगवान से रोज करते है प्रार्थना की अगले जन्म भारतीय सैनिक ही बनू  

शारीरिक नुकसान की वजह से भारतीय सेना में कम समय ही दीपचंद अपनी सर्विस दे पाए। वो कहते हैं कि इस जन्म में एक आस अधूरी रह गई। मैं भगवान से हर रोज प्रार्थना करता हूं कि जब अगला जन्म मिले तो मैं भारतीय सेना का सैनिक ही बनूं, ताकि देश की सेवा में एक बार फिर से खुद का योगदान दे सकूं।

हिसार के गांव के पाबड़ा निवासी लांस नायक दीपचंद वर्ष 1989 में सेना में भर्ती हुए और कश्मीर में सेना के कई जोखिम भरे ऑपरेशन में शामिल रहे हैं। चीफ आफ आर्मी स्टाफ विपिन रावत ने कारगिल दिवस पर कारगिल में सराहना भी की थी। रायपुर में एक्स आर्मी फाउंडेशन के पूर्व सैनिक दिनेश मिश्रा और उनके संगठन के लोगों द्वारा कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में दीपचंद का सम्मान किया गया।

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url